
चीन का उत्थान और पतन

पाठक भलीभाँति जानते हैं कि हमारी धरती का नियंत्रण उसकी नाभी में चल रहे ^Nuclear Fission Reactor जियो-रियेक्टर) से होता है और उस फिशन रियेक्टर मंे Uranium लगातार ईधन के रूप में खप रहा है। 45 प्रतिशत Uranium खप चुका है और 55 प्रतिशत बाकी है। धरती की नाभि में स्थित Nuclear Fission Reactor को धरती का हिरण्य गर्भ भी कहा जाता है और वही हिरण्य गर्भ धरती के ‘मैग्नेटो सफियर’ (जियो मैग्नेटिज़म-मैग्नैटिक एनर्जी) का उद्गम स्थल है और वही हिरण्य गर्भ से लगातार 24 घंटे अग्नि (हीट एनर्जी) निकलती रहती है। इस ‘हीट एनर्जी’ के कारण धरती फुटबाॅल की तरह फूली हुई है और धरती के ऊपर बस रहे 800 करोड़ लोगों का जीवन और अस्तित्व उसी पर निर्भर है। धरती के हिरण्य गर्भ में जो Nuclear Fission Reactor चल रहा है, उसका नियंत्रण परम व्योम में अमृत पुंज द्वारा किया जाता है। इस अमृत पुंज को घन परमेश्वर या पुरूषोत्तम या परम पुरूख, गाॅड, अल्लाह भी कहा जाता है और परम व्योम को सातावां आसमान, गौलोक, सत्यलोक, सचखंड भी कहा जाता है। आज से 7 करोड़ साल पहले हमारा भारत देश अफ्रीका के दक्षिण पूर्वी तट का हिस्सा था। वहां से टूटकर यह 10 सेमी. प्रतिवर्ष की गति से 3 करोड़ साल में चाईना से आ टकराया और पिछले 4 करोड़ वर्ष में 4 सेमी. प्रतिवर्ष की गति से चीन के नीचे घुसता चला गया और पिछले 4 करोड़ साल में इसके 2000 किमी. की लम्बाई चीन के नीचे घुसने से कम हो गई। यानि कि जब ये अफ्रीका से अलग हुआ था, उसके मुकाबले में आज भारत की लम्बाई 2000 किमी. कम है। इस टकराव का दूसरा नतीजा ये निकला कि चीन ठीक मध्य में से दो टुकड़ों में बंट गया। उसका पूर्वी और पश्चिमी हिस्से का संतुलन खत्म हो गया और उन दोनों हिस्सों में बहुत गहरी दरारें पड़ गई। उन दरारों में से होता हुआ मैग्मा (अग्नि देवता) चलता हुआ ऊपर आ गया। जिसके फलस्वरूप आज चीन की मेन लैंड के अंदर तीन सक्रिय ज्वालामुखी फूट पड़े। इसके अलावा चीन में बहुत स्थानों पर गर्म पानी चश्मे फूट पड़े। आज जो हिमालय नजर आता है, वो भी इस टकराव का तीसरा परिणाम है। पाठकों को हम बता दें कि हिमालय का जन्म सिर्फ 4 करोड़ वर्ष पूर्व ही हुआ है, उससे पहले हिमालय अस्तित्व ही नहीं था। जो तिब्बत का पठार है, उसकी मोटाई बाकी दुनिया की मोटाई से दो गुना (70 किमी.) हो गई। इन परिस्थितियों में चीन के ऊपर जितनी वाॅटर बाॅडीज हंै, उनका पानी मैग्मा से मिक्स होकर भाप बनाता है और जब भाप का प्रेशर एक सीमा को लांघ जाता है, तो विस्फोट होकर भूकंप आता है। चीन के मैन लैंड में जो सक्रिय ज्वालामुखी हैं, उनके मुंह से ‘फायर टाॅरनेडोज’ और ‘लाॅ प्रेशर एरिया’ बनते हैं। जिसके कारण आसपास के समुद्रों और वाॅटर बाॅडीज का पानी भीषण बरसात करता है, जिससे वहां पर बाढ़ आते हैं। कुल मिलाकर ये एक ‘विशियस सर्कल’ (दुष्चक्र) का रूप धारण कर चुका है। दुनिया के देखा देखी चीन ने अपने देश में बिजली उत्पादन के लिए बहुत बड़े और अनेक पानी के डैम बना दिये हैं। मगर चीन के धरातल की बनावट ऐसी है कि वो सारे के सारे बिजली के डैम चीन को फायदा कम नुकसान ज्यादा पहुँचाने में लग गऐ है। क्योंकि आग और पानी का संगम बहुत घातक होता है। इस भूल को चीन जितनी जल्दी हो सके, तो सुधार ले। चीन में जितने भी गर्म पानी के चश्में और सक्रिय ज्वालामुखी हैं, उनके ऊपर ‘जियोथर्मल पाॅवर प्लांट’ लगाकर मैग्मा की गर्मी को बिजली में परिवर्तित करना शुरू कर दे। जिससे चीन के धरातल की गर्मी का अंश कम हो जाऐगा और बिजली का उत्पादन भी बढ़ जाऐगा और दूसरी तरफ जितनी भी वाॅटर बाॅडीज हैं, जिसमें कि बिजली बनाने के डैम्स भी शामिल हैं, उनका पानी जितनी जल्दी हो सके, उसको खत्म कर दे।
18 जून 2019 को चीन में आया 6 डिग्री ‘रिक्टर स्केल’ भूकंप जिसमें करीब 17 आदमी मर गये और 225 आदमी घायल हो गए हैं। वह इसी दुष्चक्र का संकेत है। दुनियां का सबसे घातक भूकंप जिसमें 8 लाख 30 हजार आदमी मरे थे, वह भी चीन की धरती पर ही आया था। ये तो समस्या का एक ‘फिजिकल साईटिंफिकल’ हल है। मगर दूसरा ‘मैटा फिजिकल सल्यूशन’ भी है, वो आज के कलियुग के अभिमानी वैज्ञानिकों की समझ से बाहर है। जैसा कि हम पहले लिख चुके हैं कि धरती का नियंत्रण गौलोक से है। इसी बात को दोहराते हुए, पुराण का एक श्लोक कहता है कि ‘गोभि विप्रश्च वेदेश्च सतिभि ब्रह्मवादिभि अलुब्धहि दानशीलस्य सप्तभि धार्यते महि’ इसका अर्थ है कि हमारी धरती माता (महि) का नियंत्रण 7 विभूतियाँ करती हैं। जिनके नाम हैं गाय, वचनसिद्ध योगी (विप्र जैसे दुर्वासा ऋषि), वेदों के मंत्रदृष्टा ऋषि, ऋषिकाऐं, ब्रह्मज्ञानी, वैरागी, दानवीर इन सात विभूतियों के पुण्य प्रताप (दया दृष्टि) से हम 800 करोड़ धरतीवासी चैंन की बंसी बजाकर सुख शांति से जीवन यापन करते हैं और उसका आनंद उठाते है। वेदों में भी लिखा है कि धरती के जिस भूखंड पर गौशाला में गऊ माता निर्भय होकर निवास करती हैं उस स्थान पर प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप नहीं होता है। अगर कोई भी देश गऊ माता को निवास के लिए सुरक्षित स्थान प्रदान करता है, तो उसके सौभाग्य में दिन दुगनी और रात चैगुनी वृद्धि होती है। अगर गौलोक से भारत, चीन या दुनिया का कोई देश सौभाग्य आर्शीवाद प्राप्त करना चाहता है, तो अपने-अपने देश के गोधन को सम्मानित और सुरक्षित स्थान (गोचर भूमि) प्रदान करना होगा। ‘गौलोक से आई आवाज, बंद करो ये अत्याचार’।
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Date:- Wed, 06 JULY 2019
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